संवेदना
संवेदना
हाँ, बच्चों को पढ़ाना चाहिये
आगे बढ़ाने का आग्रह रखना चाहिये
जब उसका ज़हन तैयार करने
के लिए पाठशाला में भेजते हैं
उसके पहले उसके दिल
को तैयार करना चाहिये
जितनी तवज्जों दुनिया की चीज़ों को मिली
उतनी एहमियत इंसान के
एहसासात को नहीं मिली
बच्चों का ज़हन तो मजबूत हो जायेगा
लेकिन इस जद्दोजहद में
दिल कमज़ोर हो जायेगा
जब इकठ्ठा करलेगा वो सब
नहीं बचेगा कुछ भी उसके पास तब
घर होगा उसमे बैठ पढ़ने के लिए
किताब ना होगी संगीत होगा
उसको महसूस करने के लिए जज़्बात ना होंगे
शब्द होंगे उसको कविता बनने
के लिए संवेदना ना होंगी
ये जो अपने सपनों का बोज
बच्चो के कंधो पे दाल रहे हो
ऐसा करके उनकी कल्पना शक्ति
को कुचल रहे हो
अब बदलाव की ज़रूरत है
ज़हन की नहीं दिल की
परवरिश की ज़रूरत है
बिना संवेदना, कामयाबी ना कामयाबी है
पैसे को सब कुछ समझना बेईमानी है।