बाज़ार
बाज़ार


ये चलन आम हुआ है
एक ख़रीदने के बाद दूसरे का
दाम मालूम हुआ है।
कई विचार, कई भावनाओं
का त्याग हुआ है
हर छोटी छोटी चीज़ का
भाग हुआ है।
वस्तुओ को जीवन का
पर्याय बनाया है
ज़िन्दगी को आलीशान घर,
गाड़ियों से सजाया है
सब चीज़ का दाम लगाया है
जीवन की उम्मीद को
दहलीज़ से ही भगाया है
किसको फ़िक्र यहाँ की
किसने कितना लहू बहाया है
सब ने सिर्फ अपने हिस्से को अपनाया है
ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी नहीं बाज़ार है
यहाँ बिकते सब, आपका क्या विचार है ?