STORYMIRROR

Burhan kadiyani .

Abstract

3  

Burhan kadiyani .

Abstract

बाज़ार

बाज़ार

1 min
270

ये चलन आम हुआ है

एक ख़रीदने के बाद दूसरे का

दाम मालूम हुआ है।


कई विचार, कई भावनाओं

का त्याग हुआ है

हर छोटी छोटी चीज़ का

भाग हुआ है।


वस्तुओ को जीवन का

पर्याय बनाया है

ज़िन्दगी को आलीशान घर,

गाड़ियों से सजाया है

सब चीज़ का दाम लगाया है


जीवन की उम्मीद को

दहलीज़ से ही भगाया है

किसको फ़िक्र यहाँ की

किसने कितना लहू बहाया है


सब ने सिर्फ अपने हिस्से को अपनाया है

ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी नहीं बाज़ार है

यहाँ बिकते सब, आपका क्या विचार है ? 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract