संकट में जीवन
संकट में जीवन
करके प्रकृति से खिलवाड़,
प्रकृति को किया है बीमार,
संकट में घेरा खुद को मानव
करके धरती से छेड़छाड़।
काट-काट वन को बेधड़क,
बना लिया फैक्टरी, सड़क,
न सोचा न समझा आगे की
देखा चकाचौंध तड़क-भड़क।
किया है धरती का जो दोहन,
हुआ दूषित अब ये वातावरण,
जनजीवन हुआ अस्त-व्यस्त
संकट में पड़ा है मानव जीवन।
