सुनो मेरे हमराही
सुनो मेरे हमराही
सुनो,
ओ मेरे हमराही
मुझे तुमसे कुछ कहना है
तुम सोच रहे होगे कि सामने कहने के बजाय
मुझे लिखकर कहने कि क्या आवश्यकता हो गई ?
पर सच कहूँ कुछ बातें सामने कहना मुमकिन नहीं ।
इसलिए लिखना पड़ा ....
यूं हाथों में तुमने मेरा हाथ क्या लिया,
मैंने तो अपना वजूद ही मिटा लिया ,
फूल भी मिले काँटे भी मिले राहों में-
हमने तुम्हारी मर्जी से राहें सजा लिया ,
प्यार भी मिले पर तकरार भी हुए ।
कभी इन्कार हुए तो इकरार भी हुए।
गृहस्थ पथ तो तपस्या है " मेरे सजन "
यदि कभी तपन थी , तो बौछार भी हुए।
अजनबी थे तुम मगर हमराज बना लिया ,
तुमको हमने अपना दिलदार बना लिया,
तुम्हारे लिए दिल क्या जां भी हाजिर है-
तुम्हें तो मैंने अपना सरताज बना लिया ।