संख्यात्मक अवरोहण- हास्य कविता
संख्यात्मक अवरोहण- हास्य कविता
दस दिन से घरवाली हमारी सिर्फ लौकी खिला रही है,
नौ किलो लौकी कल फिर वो मायके से लेकर आई है,
आठों पहर लौकी खिलाती घरवाली हमें बैल समझती है,
सात फेरे लेकर फंस गए हम हाय किस्मत हमारी फूटी है,
छह दिन पहले पड़ोस के घर से खाने का निमंत्रण आया,
पांच प्लेट तो जरूर खाऊंगा सोचकर मुंह में पानी आया,
चार पुड़ियां ही खाई थीं तभी घरवाली दौड़ी दौड़ी आई,
तीन घंटों से ढूंढ रही हूं किसने हमारी सब लौकी चुराई,
दो आंखों से घूर रही जो हम तो पत्तों की तरह सूख गए,
एक फटकार से ही घरवाली को सारी सच्चाई बोल गए।