सनक, बुढ़ापे की या जवानों की
सनक, बुढ़ापे की या जवानों की
वो आंखें, वो सूरत, वो शख्सियत,
जो वक्त के साथ आज बूढ़ी हो चली हैं,
दिन उसने भी देखे थे जवानी के,
झूमता सावन, वो बहारों से भरा बसंत,
रंगीनिया , मदमस्तियां,
वो जवानी की तमाम अठखेलियां,
खेली थी उसने भी, और अनगिनत ऐसी,
खुशियों की सौगातें वो लूट सकता था कई,
पर नहीं, कर दिए कुर्बान,
उसने अपनी तमाम खुशियां,
अपने सभी ऐसो आराम, वो मदमस्त नींद,
सब कुछ, सजाने को तुम्हारा बचपन,
और संवारने को तुम्हारा भविष्य,
कर दिया कुर्बान उसने अपना वर्तमान,
लेकिन अब जब वही शख्स,
मांगता है तुमसे, प्यार के दो बोल,
थोड़ा सम्मान,तुम्हारा थोड़ा सा वक्त,
तो तुम उसे तेवर दिखाते हो?
और दोस्तों के बीच,खीज के कहते हो,
"दो घड़ी भी आराम नहीं इन्हें,
सनक गए हैं बुढ़ापे में आकर..."
