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Hariom Kumar

Abstract

4.9  

Hariom Kumar

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कभी हो जाना मुश्किल और कभी आसान हो जाना

कभी हो जाना मुश्किल और कभी आसान हो जाना

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"कभी हो जाना मुश्किल और कभी आसान हो जाना,

कभी बन जाना निर्बल और कभी बलवान हो जाना,

कलम को पूजना, तलवार का अभ्यास भी करना,

जरुरत जब हो जैसी,तू वही पहचान बन जाना,


किसी के बांट लेना गम, किसी को खुशियां दे देना,

जरुरतमंद हो कोई तो उसके काम आ जाना,

जरुरी है नहीं बनना फरीस्ता या खुदा कोई,

यही काफी है सच्चे अर्थों में इंसान हो जाना,


कहां तुम ढूंढते हो उसको यूं मंदिर में, मस्जिद में,

कहां मुमकिन है उसका एक कोई धाम हो जाना,

ये जग,संसार उसका है, वो हर इक शय में शामिल है,

वो क्यूं चाहेगा पत्थर में सिमट भगवान हो जाना,


तू हिंदू हैं, तू मुस्लिम हैं, है तेरी कोई भी जाति,

तेरी मर्जी तू बन सिख, बन तू पंडित, खान हो जाना,

मगर ये याद रखना बात जब भी देश की आए,

नहीं कुछ और तू बस एक हिंदुस्तान हो जाना,


मिला जिनसे तुम्हें जीवन, तेरा अस्तित्व जिनसे है,

तू उन मां-बाप का अंधियारों में तनुत्राण बन जाना,

कांपते हाथों की ताकत, सुखते होंठों की मुस्कान,

जरुरत और समय पर उनकी आंखें, कान हो जाना,


भुला अपनी हर इक ख्वाहिश, तुम्हें पाला, तुम्हें पोसा,

जिसे मांगा दुवाओं में, तू वो अरमान हो जाना,

कभी उनको समझ लेना, कभी समझा उन्हें देना,

बुढ़ापे में सहारा उनका तू परित्राण बन जाना।"


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