विचारार्थ
विचारार्थ
क्या ज़रुरी है हम बस
इस पर ही विचार करें,
लोक-हित में हो जो हम
बस वही व्यवहार करें,
रिवाजों और परंपराओं
के नाम पर हम,
भूलकर भी न कभी
मानवता को शर्मसार करें,
बांटती हो जो इंसान को
इंसानों से,
बेख़ौफ़ होकर ऐसी
सोच पर हम वार करें,
हो जहां मन में प्रेम,
करुणा और स्थान
सब के लिए,
चलो हो एकजुट हम
अपना वो संसार करें