संदेश गांधी का
संदेश गांधी का
लगता है अहिंसा का पाठ दृगवंचित होगा,
सत्य समर्पण सदाचार से वंचित होगा ।
मरघट सा संसार मौत का मंजर है,
लहूलुहान है बापू सत्तासीन अब खंजर है ।।
जन्म मरण जीवन सब अर्पण किया था,
सहज-सरल भाव से स्वयं को समर्पण किया था ।
राह में अटका स्वराज छाई अंधियाला क्यों है?
सुधा कुंड से सुधा दिया अब प्याले में हाला क्यों है??
औघट यह घाट जगत है,
क्षीण मानवता महा भयकारी ।
विस्मित होत गांधी के वतन में,
दारुण व्यथित है अकेली नारी ।।
हे अंबा सीता निज मुख खोलो
तुम,
क्रंदन भाव से मौन ही कुछ बोलो तुम ।
कुमकुम कुसुम केसर अब क्रुद्ध हुए हैं,
ज्ञान देते लोग स्वयं ही बुद्ध हुए हैं ।।
करुण रस करुण भाव में करुण गान क्यों है?
डरी सहमी सी कोने में आज हिंदुस्तान क्यों है??
रेशमी नगर के वासी मखमल से मोह तजो रे,
मर्यादा को जागृत कर राम नाम तुम जपो रे।।
बापू ने बहुत सहा था बापू को सह जाने दो,
सत्ता का मोह त्यागो सत्ता को बह जाने दो ।
मानवता है साधना मन से इसको साधो रे,
मंदिर मस्जिद को बस सौहार्द सुत से बांधो रे ।।