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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Inspirational

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Inspirational

संभावनाओं के बीज..

संभावनाओं के बीज..

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भले ही दिखने लगें चेहरे पर

उम्र की गाढ़ी लकीरें ,

मत समझना कि 

सब कुछ हो रहा है समाप्त

धीरे-धीरे ,

शुष्क होती हुई देह‌ में

बाकी रह ही जाती है कहीं न कहीं

थोड़ी सी नमी

और

हथेलियों में

थोड़ी सी तपन !!


जैसे कि ...

उस "प्रलय" के बाद

रह गई थी वहां

थोड़ी सी गीली मिट्टी ,

फिर .. दिखी हरी दूब

फिर.. छोटे-छोटे जीवाश्म

फिर.. छोटे-छोटे जीव..

और फिर..इसी तरह पनपता रहा जीवन !!


सुनो..

हम भी तलाश ही लेंगें

थोड़ी सी गीली मिट्टी

मन के किसी ओट में ,

बिखेरेंगें

"संभावनाओं के बीज"..

अंकुरित होंगीं आशाएं.. 

फिर..उगेगी "प्रेम-दूब"

बिल्कुल हरी-भरी

और..

शुरू होगा जीवन

प्रेम का !!


देखो तो सही..

ये सब सोचते हुए

ज्यों-ज्यों गिर रहें हैं आंसूं

डायरी के पीले पन्नें हुए जा रहे हैं हरे !!



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