संभाले नहीं जाते
संभाले नहीं जाते
गिरते अश्क हमसे संभाले नहीं जाते
इश्क के मुकाम हमसे टाले नहीं जाते।
बहुत रसीले थे तेरे होंठों के जाम की
जाम से पड़े मुंह के छाले नहीं जाते।
मेरे सीने पर वो बेखौफ चले बेखबर
फिर भी मन में बैर पाले नहीं जाते।
वो भर पेट खा के सो गए हैं चैन से
बिन उनके मुंह में निवाले नहीं जाते।
गर मेरे हाथों पे तेरी लकीरें ना होती
हाथों से औजार और भाले नहीं जाते।
एक पल तू उतर भी जाए जेहन से
आंखों से आशिकी के जाले नहीं जाते।
बेदर्दी में नगमें लिख गया 'सिंधवाल'
कि भरे गले से वो अब गाए नहीं जाते।