STORYMIRROR

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

4  

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

समय की चाल

समय की चाल

1 min
247


समय की ये कैसी चाल है,

ना कहीं वृंद दिखते हैं,

ना कहीं लताएं दिखती हैं

मंजिलों की होड़ है, 

रास्तों का जाल है।

समय की कैसी चाल है।।


 प्रकृति रंग बिहीन हो रही है,

 अपना अस्तित्व खो रही है,

 वैसे तो हर किसी को मलाल है।  

यह समय की कैसी चाल है।।


ना ठंडी हवाओं के झोंके हैं,

ना खलियानों के झरोखे हैं।

रंग में कोई कहां रंगता है,  

हर जगह तो गुलाल है।

यह समय की कैसी चाल है।।


न जाने कहां गायब हो गई,

बरसात की सोंधी खुशबू।

क्योकि मंजिलों की होड़ है,

और रास्तों का जाल है। 

यह समय की कैसी चाल है।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy