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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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समय का चक्र

समय का चक्र

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जीवन रूपी घड़ी 

बस चलती रहती 

है निरंतर

अविरल अपनी ही गति में

लेकिन पहिया


समय का अपने ही वेग

बिना किसी आहट 

न किसी की प्रतीक्षा के

बस चलता ही रहता है

समय के होते पंख


उड़ जाता है लगाकर अपने पंख

रह जाते है

पीछे कुछ अवशेष

भरोसा नहीं समय का


न कुछ बोलता न दुआ सलाम करता है

सबको अपने आगे झुकाकर

चमत्कार दिखाता है

बड़ा सयाना है समय


हर गुथी यही सुलझाता है

बात मानो समय की

हर घाव पर मरहम यही लगाता है


सर्वोत्तम चिकित्सक भी यही है

मगर हर शक्ल भी बिगाड़ देता है

यह ऐसा ऋण है


जिसे कोई नहीं चुका पाता है

समय नहीं झुकता किसी के आगे

आगे इसके सबको झुकना पड़ता है

ये दुनिया समझो साथ उसी के

जो समय देखकर चलता है।


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