समुद्रगर्भा थी तू
समुद्रगर्भा थी तू
तुझे हमने समुद्र से पाया था मां
अथक परिश्रम, मंथन से;
वराह दंत पर सजी
श्यामल, सुंदर, निर्मल !
रत्नगर्भा थी तू;
हम अधम-
अपने पैने वराह दंतों से
तेरा खनन करते रहे सदियों से;
आज कहीं चूल्हा नहीं जलता
क्योंकि रत्न तो क्या
हम ने कोयला तक नहीं छोड़ा तेरे गर्भ में।
मां, तुझे हमने-
रिक्तगर्भा कर दिया है
शस्य श्यामला तू;
अविरम हम तेरी हरियाली
नोचते रहे;
अब तू फटती है निर्ममता से
गर्भ में हमें समा लेती है,
फूटती है ज्वाला बन-
लील लेती है अस्तितव लपटों में;
मल जाती है-
स्याह-सफेद राख हमारे
निर्लज्ज चेहरों पर;
मां, तुझे हमने-
अग्निगर्भा कर दिया है
नद-नदियां, ताल-तलैय्या
सिंधु अथाह,
असीम जलभंडार ले कर
तू आई थी;
इतना हम तुझे उलीच चुके-
कि अब एक बूंद को
प्यास बुझाने को
तरस रहे हैं, तिल-तिल चुक रहे हैं।
तेरा प्रलयंकारी रूप भी हमें
चेता नहीं पाया
समुद्रगर्भा थी तू, मां
जिस दिन तू समुद्र में जा समाएगी
हम ‘सर्वज्ञ’, सर्व ‘शक्तिमान’
कहां जाएंगे!!
