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Dr. Anu Somayajula

Tragedy

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Dr. Anu Somayajula

Tragedy

समुद्रगर्भा थी तू

समुद्रगर्भा थी तू

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तुझे हमने समुद्र से पाया था मां

अथक परिश्रम, मंथन से;

वराह दंत पर सजी

श्यामल, सुंदर, निर्मल !


रत्नगर्भा थी तू;

हम अधम-

अपने पैने वराह दंतों से

तेरा खनन करते रहे सदियों से;

आज कहीं चूल्हा नहीं जलता

क्योंकि रत्न तो क्या

हम ने कोयला तक नहीं छोड़ा तेरे गर्भ में।

मां, तुझे हमने-

रिक्तगर्भा कर दिया है


शस्य श्यामला तू;

अविरम हम तेरी हरियाली

नोचते रहे;

अब तू फटती है निर्ममता से

गर्भ में हमें समा लेती है,

फूटती है ज्वाला बन-

लील लेती है अस्तितव लपटों में;

मल जाती है-

स्याह-सफेद राख हमारे

निर्लज्ज चेहरों पर;

मां, तुझे हमने-

अग्निगर्भा कर दिया है


नद-नदियां, ताल-तलैय्या

सिंधु अथाह,

असीम जलभंडार ले कर

तू आई थी;

इतना हम तुझे उलीच चुके-

कि अब एक बूंद को

प्यास बुझाने को

तरस रहे हैं, तिल-तिल चुक रहे हैं।

तेरा प्रलयंकारी रूप भी हमें

चेता नहीं पाया


समुद्रगर्भा थी तू, मां

जिस दिन तू समुद्र में जा समाएगी

हम ‘सर्वज्ञ’, सर्व ‘शक्तिमान’

कहां जाएंगे!!


                           


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