समर्पण
समर्पण


मैं आपकी आरती
उतारूँगी
फूलों से घर को
सजाऊँगी !
आ जाएँ घर
एक बार सजन
मैं दिनभर यूँ ही
नाचूँगी !
नज़रों से आपको
निहारूँगी
शीतल हवा के झोकों को
अपने आँचल से
बुलाऊँगी !
दीपों से उजाला
लाऊँगी
फूलों से सेज
सजाउँगी !
चन्दन की खुशबू से
घर को
सब दिन इसको
महकाऊँगी !
भूले बिसरे क्षण को
बताऊँगी
दर्द बिरह का आपको
सुनाऊँगी !
आप नहीं अब जाना दूर
वरना मैं नहीं रह
पाऊँगी !