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इच्छित जी आर्य

Abstract

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इच्छित जी आर्य

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समझा करो

समझा करो

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इस समय की नजाकत को समझा करो,

घड़ी है संकट की,आफत को समझा करो,


मुझे आलिंगन की ख्वाहिश बहुत है मगर,

अपने जिंदगी की कीमत को समझा करो,


जाने से पहले एक झलक पाने आया हूं,

मेरी इस बेपनाह मुहब्बत को समझा करो,


कैद में रहो चहारदीवारी में कुछ दिनों तक,

डाक्टर्स की हर नसीहत को समझा करो,


छोड़ रही हैं सांसें दामन सैकड़ों लोगों की,

इस महामारी की हकीकत को समझा करो,


होंगे निर्भर तुम पर तुम्हारे शुभचिंतक ज़रूर,

तुम अपने आप की जरूरत को समझा करो,


ये जिंदगी नहीं मिलेगी दोबारा , 'ऐ नीरज,!'

इस शरीर की हिफाजत को समझा करो।


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