सम्बन्ध
सम्बन्ध
जब सम्बन्धों में
वे चाहे उत्पादन सम्बन्ध हों या वैवाहिक
भयंकर दरार पड़ जाय
या उनमे पैदा हो जाय सडांध
तब सम्बन्ध बोझा ढोने का नाम भर रह जाते हैं
और उनसे, चेतना या
व्यक्तित्व को कुण्ठित करने का काम
लिया जाता है
जुझारू जन अपनी उत्ताल चेतना को
कुण्ठित नहीं होने देगा
वह शंखनाद की तैयारी करता है
युद्ध सम्पूर्ण विराधाभासों को
कर देता है हल
तब सम्बन्धों में एक नई ताजगी
एक नयी उमंग पैदा होती है
जो हमें जीवन के
सत्यम शिवम सुन्दरम
की ओर करती है
ऊर्ध्वगामी।
