समाज के भेड़िए
समाज के भेड़िए
भेड़िए समाज के अब बैठे है तैयार
आतंक के प्यासे हैं मासूमों पे करते वार।
वो पहचान में नहीं आते पहन के नकाब
है उनके एक सुंदर सरल दिखावे की स्वभाव।
छल कपट को बनाते है अपने हथियार
सबके विनाश में मिले सुकून भले हो खुद की हार।
नहीं है ताकत करने सच्चाई और अच्छाई का सामना
थोड़ा हिम्मत और हौसलों से आरम्भ होता डगमगाना।
