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ANKIT KUMAR

Abstract

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ANKIT KUMAR

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सियासी गुर्गे

सियासी गुर्गे

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मुक्त गगन के पंछी थे

हमे रहना था आजाद,

इन सियासी गुर्गों ने, 

 हमे कर डाला बर्बाद।


मंदिर टूटा मस्जिद टूटा

टूटे है सभ्य मुशायरे,

इनके स्वार्थी जुमलो से

बंट गए हैं ईद दशहरे।


कभी राम नाम कभी पैगंबर

की करते रहते हैं बाते,

असहाय भूखे मनुष्यों का

जिक्र कभी न लाते।


बस सिंहासन का मोह इन्हें

है ये सत्ता के ठेकेदार,

पलक झपकते कर देते हैं

भीषण बंटाधार।


लोकतंत्र का पर्व मनाकर

करते हो जनता पर घात,

संवैधानिक मर्यादाओं को भी

कर देते हो क्षत विक्षत।


याद रखो ऐ धोखेबाजो

ये है जनता की सरकार,

इसी तरह अगर चला यहां सब

तो कर देंगे तेरा तिरस्कार।


कभी निर्भया, कभी प्रियंका

है भेंट बलि की चड़ जाती,

तुम्हें राजनीति करते हुए

क्या तनिक भी शर्म नहीं आती।


गाँधी नेहरू पटेल सुभाष

की तस्वीरें लिए फिरते हो,

उनके आदर्शों की फिर

क्यों प्राण घोंटते फिरते हो।


बदलो तुम इस रवैये को

अब तो होने दो देशोत्थान,

राम रहीम की शिक्षा का

अब तो कर लो तुम सम्मान।


72 वर्ष है बीत गए

होकर अंग्रेज़ों से आजाद,

ऐ राजनीति अब तो कर दे

इस स्वर्ण पंछी को भी आबाद।


मुक्त गगन के पंछी थे

 हमे रहना था आजाद,

इन सियासी गुर्गों ने

हमें कर डाला बर्बाद।


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