STORYMIRROR

ANKIT KUMAR

Abstract Inspirational

4  

ANKIT KUMAR

Abstract Inspirational

रूकना नहीं,थकना नहीं

रूकना नहीं,थकना नहीं

1 min
859

ये राह ज्यों ज्यों चढ़ रही,

है भार त्यों त्यों बढ़ रही,

चढ़ती - उतरती सांसों की,

परवाह त्यों त्यों कढ़ रही।


है टूट जाता यूं प्रभंजन,

भिड़ के जिनके हौसलों से,

नाप डाले जो धरा को,

शून्य करके फासलों से।

जिसके बाहुबल की मंशा,

मोड़ डाले कई हिमालय,

काल कौतुक की तमन्ना,

है जहां थमना नहीं।

रुकना नहीं थकना नहीं,

है अंत बस इतना नहीं।


जलते धधकते अग्नि पुंजों की

लपट जैसे संजोए,

दोपहर का वो प्रभाकर,

ताप का सागर बिछाये।

दे रहीं पल पल चुनौती,

उस विरंचि पुतले को,

पर कहां सीखा है उसने,

टालना इन जलजले को,

चौड़ी छाती, ऊँचा मस्तक,

आँखों में अभिमान ले के,

तुच्छ आतुर मुश्किलों में

घिर के भी झुकना नहीं,

रुकना नहीं, थकना नहीं,

है अंत बस इतना नहीं ।


टीके कहां तक वो चतुराई,

कर्महीनता जहाँ समाई,

बिन जप-तप और त्याग,

मनोबल,

कभी नहीं सजती फूलबाई।

कर्मयोगी के कर्म तेज़ सा,

भीषण जग में अस्त्र कहां?

जलजलों के पाँव भी

आकर यहाँ जमना नहीं।

रुकना नहीं, थकना नहीं है

अंत बस इतना नहीं ।                


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract