पुस्तक तेरी याद
पुस्तक तेरी याद
जब साये का भी सच छुप जाता,
दिखे नजर फिर भी नहीं आता,
मधुर वचन का लेप चढ़ाकर,
गर कोई मतलब निपटाता।
कांटों का अंबार सजाकर,
भौरों को जब पुष्प बुलाता,
जब कैकयी के अंतःपुर में,
दशरथ भी बंधक बन जाता।
फिर जीवन का अर्थ ढूंढते,
मन जब बीच भंवर फँस जाता,
तब जाके इस कुंठित मन को,
पुस्तक तेरी याद है आती।
जब हृदय प्रेम मग्न हो जाता,
आँख मूंद भी सब दिख जाता,
जब मन व्यर्थ की बातों में भी
घण्टों तक है तर्क बनाता।
दुनियादारी की हर बातें,
जब लगती हमको है फीकी,
जब-जब फूल गुलाब दिखे और,
याद दिलाए हमे किसी की।
प्रेम समर्पित इन यादों को,
जब-जब कागज़ पर हूँ लाता,
शब्दों से कविता गढ़ने को
पुस्तक तेरी याद है आता ।
