सिपाही की गुहार
सिपाही की गुहार
मौत आती है मेरे लोगों,
कोई नयी बात नहीं है,
मगर क्या वो लोग,
जो कहलाते हैं शहीद, क्या,
उनके अनमोल जीवन की,
कोई औकात नहीं है ?
आता है घायल और,
छलनी होकर सीमा से कोई,
ध्यान न लेकर उसका,
बस व्यवस्था रहती है सोयी !
जो लुटाकर अपना सुख चैन,
रक्षा कर रहे हैं हमारी,
क्या उनके लिए हमारे दिल में,
कोई जज़्बात नहीं है ?
पड़ा रहा एक घायल सिपाही,
मदद की दरकार लिए,
सफ़ेद कोटवाले थे जितने,
सब उसको धुत्कार दिए !
सच कहते हैं पूछ की पूछ,
होती है इस देश में मेरे,
बिना सहारे का इस देश में,
समझो कोई नाथ नहीं है!
हक़ माँगते हैं हम मरकर,
मगर सरकार ध्यान नहीं देती,
हमारी विधवाओं की उचित,
माँगों पर वो कान नहीं देती !
इतना हम कहना चाहते हैं,
हम मरते हैं इस धरा के लिए,
हमको तो बस हमारा हक़ दे दो,
माँगते कोई खैरात नहीं है !