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varsha Gujrati

Romance

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varsha Gujrati

Romance

सिंदूर

सिंदूर

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प्रेम में विलीन होकर ,

ये सिंदूर रोज सजाती हूँ ...

अहसास की बूँदे , 

घुली है मेरे मन में ...

हृदय से अपने ,

प्रेम को लगाती हूँ ...


वजूद हूँ मैं , 

अपनी इस प्रेम कहानी का ...

इसकी पवित्रता का मान ,

मैं रोज अपने माथे से लगाती हूँ ....


प्रतिपल जीती हूँ मैं तुम्हें ,

तुम्हारे हृदय की ध्वनि ....

तुमसे भी पहले छूती हैं मुझे ,

नम कर जाती है आँखें मेरी ....

जब उन ध्वनि को जीती हूँ मैं ....


मेरे अस्तित्व को निखार देते ,

वो पवित्र सिंदूर की ....

सात जन्म से बंधती ,

मेरे प्रेम से लिखी ....

वो पवित्र भगवदगीता हो तुम !


मेरे अस्तित्व का निखार ,

मुस्कुराता हुआ ऋंगार हो ...

प्रेम रंग से उभरा ,

हर्दयपटल का ... इंद्रधनष हो ! 


ये केवल सिंदूर का लाल रंग नही ,

तुम्हारी परछाई का प्रतिबिंब है ....

हैं ये जहाँ के लिए काला टीका ,

क्योंकि तुम्हारे हृदय में .....

हमारा प्रेम नजरबंद है .....



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