Sushma Tiwari

Abstract

3.3  

Sushma Tiwari

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सीता नहीं मैं

सीता नहीं मैं

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ओ प्रियतम ! तुम्हें क्या याद है ? 

हम साथ-साथ बैठे जब

धीमे धीमे बातें करते

सकुचाते थे तुम भी तो, लेकिन 

आंसू मेरे ना देख पाते 

मुझसे कितना प्यार तुम करते


मुझे अपनी दुल्हन बनाने की चाहत

ओ प्रियतम! हृदय से तुमने इरादा भी किया

अपूर्व - अनुपम कुछ ना माँगा मैंने 

बस साथ खुश रहने का वादा लिया 


भाग्य हमारा खुद बैठ तय किया 

चाहे हम उम्र में कच्चे थे 

ओह! मुझे फिर भी अच्छी तरह याद है,

प्यार से भरे शब्द कितने अच्छे थे


ओ प्रियतम! सपनों की ही तो दुनिया थी वो

स्मृति में मेरे अब तक जीवित

हाँ! कितना स्पष्ट रूप से मुझे याद है

तुम भूल गए हो किंचित


ओ प्रियतम ! हम एक दूसरे को कैसे बताएंगे 

 आने वाले खुशियों के दिन साथ संजोए थे 

 और जैसे हम फिर साथ बैठेंगे,

 प्यार ही उपजेगा, प्यार के बीज जो बोये थे


ओ प्रियतम ! आशा है तुम समझ जाओगे

लौट कर समय ना आएगा 

चढ़ रही बालों पर सफ़ेदी

क्या विफल प्रयास हो जाएगा ? 


ओ प्रियतम ! राम स्वरूप तुम हो

दिल में मूरत भी तुम्हारी है

और परीक्षा दे नहीं सकती मैं

सीता नहीं मैं, बाकी मर्जी तुम्हारी है।


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