सीधी बात कोरोना से
सीधी बात कोरोना से
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बहुत हो गया बहुत सह भी लिया
बहुत बिछाया तुमने अपना जाल
डर डर के जीने पर मजबूर किया तुमने आज
मुख छुपा कर चल रहे हम
कभी न सुनने वाले सेनिटिज़ेर को अपना रहे हम
ढेर बरसाये तुमने कितने जीवों के
सस्ते में जान ले गए
ना मिलना जुलना ना बातों की महफ़िल
बस दूरियाँ सहन करना है मुश्किल
ऐसा क्यों किया तुमने ?
करनी है तुमसे सीधी बात
क्यों बिछाया तुमने अपना माया जाल
हर एक सवाल का जवाब देना पड़ेगा तुम्हें आज