श्याम में राधा ना बन पाऊंगी
श्याम में राधा ना बन पाऊंगी
श्याम में राधा ना बन पाऊंगी
प्राण प्रिया की स्मृतियां कैसे भुला पाऊंगी
स्वयं आत्मा के बिन दिन कैसे बिताऊंगी
जिसके बिना नहीं कटते दिन उसके बिन 100 वर्ष कैसे रह पाऊंगी
कान्हा तुम तो हर गोपी के नाथ बन जाओगे
सब को समाज की प्रतिबंधों से मुक्त कराओगे
पर क्या राधा की व्यथा समझ पाओगे
जब समाज की कठोरता प्रेम दबाएंगी
तब क्या तुम समाज में बदलाव लाओगे
समझ पयोगे जब में बंधन त्याग ना पाऊंगी
मान जाओगे मधुवन में मिलने में ना आ पाऊंगी
वृंदावन छोड़ द्वारका जाना देवकी नदन तुम्हारा कर्तव्य है
किसी फसलों से ना बाध्य क्या सचमुच हमारा प्रेम इतना भव्य है
वर्षों प्रेम का मोल सिखाकर मुझे जब तुम छोड़ जाओग
क्या राधिका प्रेम की स्मृतियां सचमे यूं भुला पाओगे
अकेले तुम दामोदर ना जाओगे
साथ राधा की श्वास और आत्मा भी के लेजोगे
तुम भगवान के अवतार हो फसलों से बाध्य नहीं
पर राधा का विरह आसान नहीं
मै दूरियां ना सह पाऊंगी
समर्पण जिसको पूर्ण जीवन उसके बिन दूसरा उद्देश्य ना ढूंढ पाऊँगी।
श्रीधमा के श्राप को कैसे सह पाऊंगी
समाज के सवालों का क्या जवाब दे पाऊंगी
दामोदर मै राधा ना बन पाऊंगी ।।