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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Drama Inspirational

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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Drama Inspirational

बचपन का प्रवास

बचपन का प्रवास

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कई सालों से शजर से खड़े मेरे पाँव को लम्स हुई है हरी घास आज,

कबसे खड़ी मेरी ख़ामोशी की नाव को बहा दी हवा के साथ आज।


मुरझाई लबों की पंखुड़ियों पर आहिस्ता से आके बैठी है ओस,

भारी हड्डियाँ उतारकर ओढ़ा है बादलों का लिबास आज।


ख़ुश्क ख़्वाहिशों की क्यारी पर हुई है आज किरणों की बरसात,

कितनी रातों से सोए मन पर पड़ा है आफ़ताब का उजास आज।


ज़र्द पत्ते सी शुष्क ज़िंदगी की वर्षों की बुझी है आज प्यास,

तिमिर हटाकर खोली आँखों की खिड़की भरा मन में उल्लास आज।


बंज़र बनी दिल की ज़मीं ने महसूस की गीली मिट्टी की सुवास,

वक़्त को पंख लगाकर दी परवाज़ देखा रंगीन आकाश आज।


ढलती शब में 'ज़ोया' को दिखा गए सहर आज ये उम्र के आख़री लम्हात,

झुर्रियों को झोली में भरकर एक दिन किया बचपन का प्रवास आज।

5th February / Poem6



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