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Ayush Kumar Singh

Drama Romance Tragedy

4.5  

Ayush Kumar Singh

Drama Romance Tragedy

...पत्थरों की दुकान..!

...पत्थरों की दुकान..!

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ना कर सकता था इबादत उसकी,

तो उसे अपना खुदा बनाया क्यों.?

नहीं रख सकता था ख्याल उसका,

तो उसपे अपना हक जताया क्यों..?

जिस गली में थी पत्थरों की दुकान,

उसमें शीशमहल बनाया क्यों..?

.

जब था तुझे ठोकर का डर,

तो तूने कदम बढ़ाया क्यों.?

जब था खौफ बिखरने का तो तूने,

इतने सपनों को सजाया क्यों..?

जिस गली में थी पत्थरों की दुकान,

उसमें शीशमहल बनाया क्यों..?

.

अब टूट गया महल मिल गयी खुशी,

अब वापस उस गली आया क्यों.?

जिस गली में थी पत्थरों की दुकान,

उसमें शीशमहल बनाया क्यों..?

.

क्या अभी भी दिल नहीं भरा तुम्हारा,

जो वापस मुड़कर आये हो,

क्या तुम फिर से तोड़ने महल को,

उस दुकान से पत्थर खरीद लाये हो..?


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