...ख़्वाब!
...ख़्वाब!
बेइंतहा, बेबक्त, बेकरारी से,
एक ख्वाब देखा इन नासमझ आंखों ने
बेख्याल हो जाता दिल जब
ज़ेहन में आता जुदा होने का डर,
एक ऐसा ख़्वाब,
जो हक़ीक़त से हसीन है,
खूबसूरत है,जिसकी वजह से
चेहरे पे हँसी और,दिल में सुकून है।
दिल करता है छू लूं उस को
गले लगा लूं उस ख्वाब को,
दूरियां महज एक शब्द लगें,
इतना करीब ला दूँ,ख्वाब को
चाहता हूं हो मुक्कमल,
क्योंकि ख़्वाब में मिलने वाला,
साथ हो तुम,
मेरा आज हो तुम
आने वाले हर कल का,
साज़ हो तुम।