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श्रवण कुमार

श्रवण कुमार

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हे श्रवण कुमार,

अंधे मात-पिता की

आँखों के तारे,

अब तुम सिर्फ

कैलेन्डरो में नजर आते हो,

तुम्हारी कहानियाँ बस

किताबों में ही रह गई हैं।

तुमने माता-पिता को

बंहगी पर बिठा कर,

उनका बोझ अपने

कान्धो पर उठाया था,

आज तो बेटे के लिए

माता- पिता को,

घर में रखना ही

बोझ हो गया है ।

माता- पिता बेटे के

नये समाज के काबिल नहीं,


और...

आलीशान कोठी भी

छोटी पड़ रही है,

इस लिए बेटा माता- पिता को

वृद्धाश्रम छोड़ आता है,

जहाँ कल उसके पिता ने

उसके दादा-दादी को छोड़ा था ।

कल ये बेटा भी वृद्ध होगा और

इसका बेटा भी छोड़ देगा इसे यही,

और ये भी यहां रहने वालों की तरह


यही कहेगा ....

करें मात- पिता की सेवा यहाँ,

श्रवण से अब लाल कहाँ?

भूल जाते हैं कि

श्रवण पूत बनो पहले

फिर श्रवण पूत की करना आस,

वर्ना बबूल के पेड़ से

आम पाने का नाहक ही

करते प्रयास ।



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