शरणार्थी
शरणार्थी


सरहदों को अपनी छोड़ हम बे घर हो गए,
देश अपना छोड़ा मुसाफिर हो गए,
ठिकाने से अपने जुदा हो गए,
कौन पूछेगा दो वक़्त की रोटी को
कौन देगा सहारा भटके काफिर को,
कौन देगा आशा टूटे मन को,
ना वो देश अपना रहा जहां पहचान मिली,
ना वो देश अपना रहा जहां मदद मिली,
ना वो रास्ता अपना रहा जहां ख्वाहिश मिली,
शरणार्थी की धुंधली सी कहानी है,
पन्नों पर नहीं जिक्र पर लफ्जों में दफन कहानी है,
ठहरा आज भी इंतज़ार में शरणार्थी है,
कोई आस मिले,
किसी सरहद कि पहचान मिले,