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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत-७४; पृथ्वी दोहन

श्रीमद्भागवत-७४; पृथ्वी दोहन

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299


 


मैत्रेय जी कहें, महाराज पृथु के 

होंठ क्रोध से कांप रहे थे 

डरते डरते फिर उसने कहा 

स्तुति कर उनकी, पृथ्वी ने ये।


प्रभो, क्रोध को शांत कीजिये 

मेरी प्रार्थना को अब सुनिए 

सार ग्रहण कर लेते हैं 

बुद्धिमान पुरुष सभी जगह से।


इस लोक और परलोक में 

उपाय निकाले हैं मुनियों ने 

कृषि, अग्निहोत्र अदि जो 

कल्याण के लिए मनुष्यों के।


पुरुष जो उनका आचरण करते 

अभीष्ट फल प्राप्त करते हैं 

जो अज्ञानी अनादर करें उनका 

वो निष्फल होते रहते हैं।


जो नियम का पालन न करते 

और जो दुराचारी लोग हैं 

मैंने देखा वो सभी लोग ही 

धान्य को खाये जा रहे हैं।


आप राजा लोगों ने भी 

छोड़ दिया मेरा पालन करना 

चोरों के सामान सभी लोग हो गए 

कोई भी करे आदर न।


इसीलिए मैंने छुपा लिया था 

औषधिओं को जो हैं यज्ञ के लिए 

पर बीत गया बहुत समय अब 

मेरे उदार में ये जीर्ण हो गए।


पूर्वाचार्यों ने जो उपाय बताया 

उससे उन्हें निकल लीजिये 

अन्न की अगर आवश्यकता है 

तो ये सब उपाय कीजिये।


दोहनपात्र और दुहने वाला 

मेरे योग्य एक बछड़ा चाहिए 

अभीष्ट वस्तुएं दे दूँगी मैं 

दूध रूप में, बछड़े के स्नेह में।


मुझको समतल करना तुम ताकि 

वर्षा का जल सर्वत्र बना रहे 

वर्षा ऋतु जाने के बाद भी 

मेरा भीतर भी सुख न पाए।


यह सब सुन राजा पृथु ने 

स्वयम्भुव मनु को बछड़ा बनाया 

और अपने हाथ में ही 

समस्त धान्यों को दुह लिया।


पृथु द्वारा वश में की हुई 

उस पृथ्वी से दुह लीं थीं सब 

अभीष्ट वस्तुएं अपनी अपनी 

अन्य विज्ञजनों ने भी तब।


बृहस्पति को बछड़ा बनाकर 

वहां पर समस्त ऋषिओं ने 

वेद रुपी पवित्र दूध दुहा 

इन्द्रिय रुपी पात्र में।


देवताओं ने कल्पना कर 

इंद्र को बछड़े के रूप में 

अमृत, मनोबल, इंद्रियबल 

दूध दुहा सुवर्णमय पात्र में।


दैत्य और दानवों ने मिलकर 

वत्स बनाया प्रह्लाद जी को था 

लोहे के एक पात्र में 

मदिरा, आसव का दूध दुहा था।


पितृगण ने अयर्मा नामक 

पित्रीश्वर को वत्स बनाया 

मिटी के कच्चे पात्र में 

दूध दुहा कव्य रूप दूध का।


आकाशरुपी पात्र में फिर 

बछड़ा बनाकर मुनि कपिल को 

 दुहा सिद्धों ने अणिमादि अष्टसिद्धि 

विद्याचरों ने अपनी विद्याओं को।


किम्पुरुषआदि मायावियों ने 

बछड़ा बनाया मयदानव को 

अंतर्ध्यान होना अदि सब 

उन्होंने दुहा इन मायाओं को।


यक्ष, राक्षस, भूत पिशाच जो 

कपाल रूप उनका पात्र था 

रूद्र भगवान उनके बछड़े बने 

रुधिरास्वरुप दूध दुहा था।


तक्षक को बछड़ा बनाया 

सांप और बिच्छू अदि ने 

विष रूप दूध दुहा था 

मुख रूप अपने पात्र में।


बैल जो रूद्र का वाहन है 

वत्स बने थे वो पशुओं के 

तृण रूप दूध दुहा था 

वन रूप अपने पात्र में।


मांसभक्षी जीवों ने बनाया 

सिंह को था बछड़ा अपना 

शरीर रुपी पात्र में उन्होंने 

कच्चा मांस रूप दूध दुहा था।


गरुड़ जी को वत्स बनाकर 

दूध दुहा था तब पक्षिओं ने 

कीट, पतंगे और फल अदि 

गाय रूप इस पृथ्वी से।


वृक्षों ने वट को वत्स बनाया 

दूध दुहा अनेक रस रूप का 

पर्वतों के बछड़े हिमालय 

दूध दुहा अनेकों धातुओं का।


विभिन्न प्रकार के पदार्थों को 

इस तरह सभी ने वहां पर 

दूध के रूप में दुह लिया 

अपने मुखिया को वत्स बनाकर।


मैत्रेय जी कहें हे विदुर जी 

इतने प्रसन्न हुए पृथु इससे 

पृथ्वी से पुत्री समान स्नेह हुआ 

स्वीकार किया कन्या की तरह उसे।


फिर अपने धनुष की नोक से 

पर्वतों को फोड़ दिया था  

भूमण्डल समतल कर दिया 

 जैसा पृथ्वी ने कहा था।


पिता के समान प्रजा के 

पालन पोषण में लग गए 

गांव, कसबे, नगर बनाये 

समतल भूमि पर प्रजा के लिए।



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