श्रीमद्भागवत -५९ ;सती जी का पिता के यहाँ यज्ञोत्सव में जाने के लिए आग्रह कर
श्रीमद्भागवत -५९ ;सती जी का पिता के यहाँ यज्ञोत्सव में जाने के लिए आग्रह कर


मैत्रेय जी कहें कि हे विदुर जी
वैर विरोध ये ससुर दामाद का
दक्ष और शंकर के मनमुटाव को
बहुत समय जब बीत गया था।
इसी समय ब्रह्मा जी ने दक्ष को
प्रजापतिओं का अधिपति बना दिया
अधिपति बनने के बाद तब
दक्ष का गर्व और भी बढ़ गया।
शंकरादि ब्रह्मनिष्दों को
यज्ञ का भाग उसने ना दिया
तिरस्कार करे वो उनका जब
उसने वाजपेय यज्ञ किया।
फिर बृहस्पतिसव नाम का महायज्ञ
आरम्भ किया था उसने जब
सभी ऋषि, पितृ, देवता
यज्ञ में उसके पधारे थे तब।
आकाशमार्ग से देवता जा रहे
आपस में करें यज्ञ की चर्चा
उनके मुख से सुना सती ने
पिता के घर है यज्ञ हो रहा।
देखें गंधर्वों और यक्षों की
स्त्रियां हैं जाएं सजधज कर
यज्ञोत्सव में जा रहीं वो
पतिओं संग, चढ़ विमानों पर।
सती को बड़ी उत्सुकता हुई और
शंकर जी से उन्होंने ये कहा
आपके ससुर दक्ष प्रजापति के
भारी यज्ञोत्सव है हो रहा।
यदि आपकी इच्छा हो तो
हम भी जाएं इस यज्ञ में
मेरी सारी बहने भी वहां
आई होंगी पतिओं संग में।
अपनी बहनें, माता को देखने को
मेरा मन बड़ा उत्सुक है
अपनी जन्मभूमि को देखूं मैं
मेरे मन में ये इच्छा है।
कोई सम्बन्ध ना जिनका दक्ष से
कितनी स्त्रियां वहां जा रहीं
पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने को
मन मेरा छटपटायेगा ही।
पति, गुरु और मात-पिता के यहाँ
बिन बुलाये भी हैं जा सकते
अत : आप प्रसन्न हो क्यों नहीं
मेरी इच्छा को पूर्ण करते।
सती ने प्रार्थना जब शिव से की
स्मरण हो आये, दुर्वचन दक्ष के
कहें ऐसा नहीं करना चाहिए
जब द्वेष भरा हो उनकी दृष्टि में।
विद्या, धन, सुदृढ़ शरीर
युवावस्था और उच्च कुल
हों अगर पुरषों में ये सब
सत्पुरुषों के ये सभी गुण।
नीच पुरुषों में ये सभी पर
उनके लिए अवगुण हो जाएं
क्योंकि अभिमान उनका बढ़ जाता
विवेक उनका नष्ट हो जाये।
शत्रु के वाणों से बिंधकर भी
जितनी व्यथा नहीं होती है
वो कुटिलबुद्धि स्वजनों के
कुटिल वचनों से होती है।
इसीलिए ऐसे बांधवों के
यहाँ नहीं जाना चाहिए है
माना दक्ष तुम्हे प्रेम करें
पर मुझसे बहुत जलते हैं |
मेरा अपराध नहीं था फिर भी
दक्ष ने तिरस्कार किया मेरा
माना वो तुम्हारा पिता है
पर वो है शत्रु भी मेरा।
जाने का वहां विचार छोड़ दो
फिर भी अगर तुम बात न मानो
और तुम वहां जाओ तो
अच्छा ना होगा ये जानो।
क्योंकि जब प्रतिष्ठित व्यक्ति का
बंधुजनों से अपमान है होता
वो अपमान उस व्यक्ति की
तत्काल मृत्यु का कारण बनता।