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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२७३; शाल्व के साथ यादवों का युद्ध

श्रीमद्भागवत -२७३; शाल्व के साथ यादवों का युद्ध

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श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

अब सुनो तुम शाल्व की कथा

सौभ नामक विमान का अधिपति जो

भगवान ने था उसका वध किया।


शिशुपाल का सखा था शाल्व

रुक्मिणी के विवाह में भी वो था

उस समय जरासंध के साथ में

यदुवंशियों ने उसे भी जीत लिया।


उस दिन शाल्व ने प्रतिज्ञा की थी कि

यदुवंशियों को मिटा दूँगा पृथ्वी से

इस प्रकार प्रतिज्ञा करके

शंकर जी की आराधना की उसने।


बस मुट्ठी भर राख ही 

वह दिन भर में था लेता

एक वर्ष बाद प्रसन्न हो

शंकर ने वर माँगने को कहा।


शाल्व बोला ‘ मुझे एक ऐसा

विमान दीजिए जो तोड़ा ना जा सके

यदुवंशियों के लिए भयंकर हो

इच्छानुसार कहीं भी चला जाए ‘।


शंकर जी ने उसे वर दे दिया और

उनकी आज्ञा से मयदानव ने

लोहे का सौभ नामक विमान एक

बनाया और उसे दे दिया।


विमान वो एक नगर समान था

उसे देखना, पकड़ना अत्यंत कठिन था

चलाने वाले की इच्छा से ही

जहां चाहो पहुँच जाता था।


विमान प्राप्त क़र शाल्व वे

द्वारका पर चढ़ाई कर दी

और इस विमान में से

शस्त्रों की झड़ी लग गयी।


ज़ोर का बवंडर एक उठ खड़ा हुआ

चारों और धूल छा गयी

भगवान प्रद्युमण ने जब ये देखा कि

कष्ट हो रहा प्रजा को हमारी।


साथ लेकर भाइयों और वीरों को

प्रद्युमण नगर से बाहर आ गए

भयानक युद्ध होने लगा था

शाल्व के सैनिकों और यदुवंशियों में।


काट डाला शाल्व की सेना को

प्रद्युमण ने दिव्य अस्त्रों से

शाल्व का विमान बड़ा विचित्र था

कभी एक दिखे कभी वो अनेक दिखें।


कभी कभी तो दिखता भी नहीं था

कभी पृथ्वी पर, कभी आकाश में

कभी घूमता ही रहता वो

कभी पहाड़ों पर चढ़ जाए।


एक क्षण के लिए ना ठहरे कहीं

फिर भी जब भी शाल्व दिखता

यदुवंशी वाणों की झड़ी लगा दें

एक बार तो वो मूर्छित हो गया।


परीक्षित, धयुमान उसका मंत्री था

बली था वह भी बड़ा

उसने भगवान प्रद्युमण जी पर

गदा का प्रहार किया था।


प्रद्युमण जी का वक्षस्थल फट गया

दारूक पुत्र उनका रथ हांक रहा

सारथी धर्म के अनुसार उन्हें वह

रणभूमि से दूर ले गया।


मूर्छा टूटी प्रद्युमण जी की तो

सारथी को कहा उन्होंने

रणभूमि से दूर लेजाकर मुझे

अच्छा नहीं किया है तुमने।


अब मैं ताऊ बलराम जी

और पिता श्री कृष्ण के

सामने जाकर क्या कहूँगा

अक्षम्य अपराध किया तुमने ये ‘।


सारथी कहे’ हे आयुष्मान ! मैंने

जो कुछ किया, सारथी का धर्म वो

युद्ध का धर्म कि संकट में

सारथी, रथी बचाएँ एक दूजे को।


आप मूर्छित हो गए थे

प्राण संकट में थे आपके

इसलिए मुझे ऐसा करना पड़ा

मेरा उस समय धर्म था ये।


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