गुरु
गुरु
पैदा होते ही ममता सीखी
गुरु मिला मुझे माँ के रूप में
निष्काम कर्म सीखा था मैंने
पिता करते रहते जो धूप में ।
भाई बहन से प्यार था सीखा
परिवार का आधार वही है
दोस्त मित्र सिखा गये मुझको
परिवार ही बस सब कुछ नहीं है ।
पत्नी, पुत्र शिक्षा दे गये
कैसे रहूँ सहनशील मैं
जो भी मिलता इस संसार में
लगता है मुझे मेरा गुरु है ।
चर-अचर, जीव - निर्जीव सभी
मेरे गुरु हैं इतने सारे
पग पग पर मुझे सीख मिल रही
ऋण इनका कैसे उतारें ।
वृक्ष सिखाते परोपकार करो
चाहे कोई पत्थर भी मारे
आकाश सिखाए सम रहो सदा
क्षण क्षण टूटें चाहे लाखों तारे ।
चाहे खड्डे खोदो तुम उस पर
धरती धैर्य है सिखाती
वायु गंध पहुँचाए तुम तक
पर उसके गुणों से लिप्त ना हो कभी ।
अग्नि कहे जलाना स्वभाव मेरा
किसी से भेद भाव ना करूँ
पानी कहे अवरुद्धों को पार कर
नीचे की और सदा बहता रहूँ ।
कुत्ते से निष्ठा सीखी मैंने
पक्षियों से कि ये ठिकाना
घोंसला बस ये कुछ ही पल का
वापिस फिर है लौट के जाना ।
संसार चक्र में भटक रहा हूँ
इतने गुरु होने पर भी तो
हे प्रभु , ज्ञान दो मुझको
जगतगुरु परमात्मा तुम हो।
