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Ajay Singla

Inspirational

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Ajay Singla

Inspirational

गुरु

गुरु

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पैदा होते ही ममता सीखी 

गुरु मिला मुझे माँ के रूप में 

निष्काम कर्म सीखा था मैंने 

पिता करते रहते जो धूप में ।


भाई बहन से प्यार था सीखा 

परिवार का आधार वही है 

दोस्त मित्र सिखा गये मुझको 

परिवार ही बस सब कुछ नहीं है ।


पत्नी, पुत्र शिक्षा दे गये 

कैसे रहूँ सहनशील मैं 

जो भी मिलता इस संसार में 

लगता है मुझे मेरा गुरु है ।


चर-अचर, जीव - निर्जीव सभी 

मेरे गुरु हैं इतने सारे 

पग पग पर मुझे सीख मिल रही 

ऋण इनका कैसे उतारें ।


वृक्ष सिखाते परोपकार करो 

चाहे कोई पत्थर भी मारे 

आकाश सिखाए सम रहो सदा

क्षण क्षण टूटें चाहे लाखों तारे ।


चाहे खड्डे खोदो तुम उस पर 

धरती धैर्य है सिखाती 

वायु गंध पहुँचाए तुम तक

पर उसके गुणों से लिप्त ना हो कभी ।


अग्नि कहे जलाना स्वभाव मेरा 

किसी से भेद भाव ना करूँ 

पानी कहे अवरुद्धों को पार कर 

नीचे की और सदा बहता रहूँ ।


कुत्ते से निष्ठा सीखी मैंने

पक्षियों से कि ये ठिकाना 

घोंसला बस ये कुछ ही पल का 

वापिस फिर है लौट के जाना ।


संसार चक्र में भटक रहा हूँ 

इतने गुरु होने पर भी तो 

हे प्रभु , ज्ञान दो मुझको 

जगतगुरु परमात्मा तुम हो।


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