STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत-२६५ ; कौरवों पर बलराम जी का क्रोध और साम्ब का विवाह

श्रीमद्भागवत-२६५ ; कौरवों पर बलराम जी का क्रोध और साम्ब का विवाह

4 mins
360

श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

जाम्बवती नंदन साम्ब जो

बहुत बड़े बड़े वीरों पर

विजय प्राप्त करने वाले वो।


दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा को

हर लाए थे वो स्वयंवर से

कौरवों को बड़ा क्रोध हुआ

और आपस में वो बोले।


 ‘यह बालक बड़ा ढीठ है

अपहरण किया है इसने

बलपूर्वक हमारी कन्या का

अतः पकड़कर बांध लो इसे ‘।


कर्ण, शल, भूरिश्रवा, यज्ञकेतु 

और दुर्योधन आदि वीरों ने

पकड़ने का कृष्ण पुत्र साम्ब को 

निश्चय कर किया उन्होंने।


महारथी साम्ब ने देखा कि

धृतराष्ट्र के पुत्र पीछा कर रहे

और उनपर चला रहे वाण वो

युद्धभूमि में साम्ब भी डट गए।


कर्ण आदि वीरों पर वाणों की

वर्षा कर दी थी उन्होंने

परन्तु रथहीन करके साम्ब को

कर्ण आदि ने बांध लिया उन्हें।


साम्ब और लक्ष्मणा को लेकर

आ गए हस्तिनापुर सारे

यदुवंशियों को क्रोध आया था

नारद से सुनकर समाचार ये।


कौरवों से युद्ध की तैयारी करने लगे

बलराम जी ने ये ठीक ना समझा

यदुवंशियों को शांत कराकर

हस्तिनापुर की तरफ़ रुख़ किया।


उनके साथ कुछ ब्राह्मण भी

यदुवंश के बड़े बूढ़े भी थे

नगर के बाहर ही रुक गए

ठहर गए एक उपवन में।


कौरव क्या हैं करना चाहते

इस बात को जानने के लिए

धृतराष्ट्र के पास था भेजा

उद्धव जी को तब उन्होंने।


उद्धव जी ने जाकर निवेदन किया

कि बलराम जी हैं पधारे

प्रसन्न होकर तब कौरव भी

बलराम जी की अगवानी को चले।


बड़ी धीरता से बलराम जी ने

कहा था उन कौरवों को

‘ महाराज अग्रसेन ने तुम्हें

एक आज्ञा दी है, पालन करो ‘।


उन्होंने कहा ‘ हम जानते हैं कि

तुम कई कौरवों ने मिलकर

अधर्म से अकेले साम्ब को

हरा दिया और रखा क़ैद कर।


झगड़ा मत बढ़ाइए आप अब

साम्ब और नववधू को उसकी

हमारे पास भेज दीजिए ‘

और बात ये सुन, कौरव सभी।


क्रोध से तिलमिला उठे

और कहने लगे ये उनसे

‘ यह तो बड़े आश्चर्य की बात है

कि ये यदुवंशी हमसे।


विवाह सम्बन्ध हैं करना चाहते

माना साथ में सोते उठते ये

और राज सिंहासन दे हमने

अपने बराबर बना लिया है इन्हें


लेकिन अब बस बहुत हो चुका

इन यदुवंशियों के पास से

इस राज सिंहासन को अवश्य ही

हमें छीन लेना ही चाहिए।


हमारे दिए राज चिन्हों को लेकर

उनके ही विपरीत हो रहे ये

और निर्लज्ज होकर हमपर ही

ये तो हुकम चलाने लगे ।


शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

भीष्म आदि के बल, धन सम्पत्ति के

और घमंड से अपनी कुलीनता के

कुरूवंशी थे चूर हो रहे।


साधारण शिष्टाचार की भी

परवाह तब की ना उन्होंने

और दुर्वचन कहकर बलराम को

वो सब हस्तिनापुर चले गए।


दुर्वचन सुनकर कौरवों के और

दुष्टता देखकर उनकी

क्रोध से तिलमिला उठे

उस समय भगवान बलराम जी।


हंसकर फिर कहने लगे वो

 ‘कि शान्ति नहीं चाहते वे

जिन दुष्टों को घमंड हो जाता

अपनी कुलीनता, बल पुरुष और धन पे।


उन्हें समझाना बुझाना नहीं बल्कि

दण्ड देना आवश्यक होता है

और ये क्या कह रहे वो कि

अग्रसेन राजाधिराज नहीं हैं ?


इंद्रादि लोकपाल जिनकी

आज्ञा का पालन हैं करते

कहें वो कि वो तो केवल स्वामी बस 

भोज , वृष्णि और अन्धक वंशियों के।


सुधर्मा सभा को अधिकार में करके

उसमें विराजते हैं और जो

देवताओं के वृक्ष पारिजात को

उखाड़ कर ले आए थे वो।


वे भगवान श्री कृष्ण भी

अधिकारी नहीं राज सिंहासन के

जिनके चरण कमलों की धूल को

ब्रह्मा, मैं, लक्ष्मी जी धारण करें।


उन भगवान कृष्ण के लिए

राज सिंहासन कहाँ रखा ये

यदुवंशी तो कौरवों का दिया हुआ

बस पृथ्वी का एक टुकड़ा भोगें।


खूब कहा कि हम लोग जूती हैं

और वे कुरूवंशी स्वयं सिर हैं

ये लोग ऐश्वर्य में उन्मत्त

घमंडी और पागल हो रहे हैं।


दण्ड देकर मैं उन्हें अब

होश ठिकाने लाऊँगा इनके

कौरवहीन कर दूँगा मैं

सारी इस पृथ्वी को अब से।


इस प्रकार क्रोध में भरकर

बलराम हल लेकर खड़े हो गए

बार बार नोक से चोट कर

हस्तिनापुर को उखाड़ने लगे।


उखाड़ कर डुबोने के लिए

खींचने लगे गंगा की और उसे

जल में कोई नाव डगमगा रही हो 

हस्तिनापुर कांपने लगा ऐसे।


कौरवों ने जब ये देखा कि

गंगा जी में गिर रहा नगर, तो

सब के सब घबरा गए और

बहुत डर लग रहा उन सबको।


लक्ष्मणा और साम्ब को आगे करके

अपने प्राणों की रक्षा के लिए

हाथ जोड़कर सर्वशक्तिमान

बलराम जी की शरण में गए।


कहने लगे ‘ लोकभिराम बलराम जी

शेष जी भी आप हैं, आधार जगत के

आपका प्रभाव जान ना पाए

हम लोग हैं मूढ़ हो रहे।


हमारी बुद्धि बिगड़ गयी है

हमारा अपराध क्षमा कीजिए

भूमंडल को सिर पर रखे रहें

अनन्त, सहस्त्र सिर हैं आपके।


जब प्रलय का समय है आता

अपने भीतर लीन करें जगत को

केवल आप ही बने रहकर

अद्वितीय रूप में शयन करते हो।


जगत की स्थिति, पालन के लिए

सत्वस्वरूप ग्रहण किए हुए 

द्वेष और मत्सर के कारण नहीं 

है आपका क्रोध ये।


प्राणियों को शिक्षा देने के लिए यह

नमस्कार हम आपको करते

शरण में आए हम आपकी

कृपा हमारी रक्षा कीजिए।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

कौरव घबराहट में पड़े थे

बलराम जी की स्तुति करने पर

वो उनपर प्रसन्न हो गए।


कहें उसने फिर ‘ तुम मत डरो

अभयदान देता हूँ तुमको

दुर्योधन ने बहुत सा दहेज दे

विदा किया पुत्री सुलक्षणा को।


नवदंपती सूलक्षणा और साम्ब को

लेकर बलराम जी द्वारका पहुँचे

सारा चरित्र कह सुनाया

यदुवंशियों की भरी सभा में।


परीक्षित, हस्तिनापुर आज भी

ऊँचा है दक्षिण कि और से

गंगा जी की और झुका हुआ

पराक्रम की सूचना देता बलराम के।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics