श्रीमद्भागवत -१८३; भगवन श्री राम की शेष लीलाओं का वर्णन
श्रीमद्भागवत -१८३; भगवन श्री राम की शेष लीलाओं का वर्णन
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
गुरु वशिष्ठ को, भगवान राम ने
आचार्य बनाकर, यज्ञों के द्वारा
यजन किया आत्मा का अपने।
राम ने होता को पूर्व दिशा
दक्षिण दिशा ब्राह्मणों को
अधर्वयु को पश्चिम दिशा दी
उत्तर दिशा दी उदगाता को।
उनके बीच में जितनी भूमि थी
आचार्य को दे दी उन्होंने
सारे भूमंडल को दान कर इस तरह
वस्त्र ही अपने पास रखे थे।
आचार्य आदि ब्राह्मणों ने
जब देखा कि भगवान तो
इष्टदेव मानते ब्राह्मणों को ही
प्रेम से उनके उन्होंने प्रसन्न हो।
सारी पृथ्वी लौटा दी भगवान को
और कहा, 'प्रभु , एकमात्र आप ही
सब लोकों के स्वामी हैं
सर्वश्रेष्ठ आपकी पवित्र कीर्ति।
ऐसा होने पर भी आप
इष्टदेव मानें ब्राह्मणों को
नमस्कार करते हैं हम सब
आपके इस राम रूप को''।
परीक्षित, एक बार भगवान राम ने
प्रजा की स्थिति जानने के लिए
रात को छिपकर नगर में वो
बिना बताये किसे घूम रहे थे।
उसी समय किसी की ये बात सुनी
कह रहा वो अपनी स्त्री से
कि तू दुष्ट और कुलटा है
रहकर आई हो पराये घर में।
राम भले ही सीता को रख लें
परन्तु, नहीं रख सकता मैं तुम्हें
राम ने जब कईयों से ऐसा सुना
लोकापवाद से भयभीत हो गए।
सीता का परित्याग कर दिया
वो रहने लगीं वाल्मीकि आश्रम में
सीता उस समय गर्भवती थीं
एक साथ दो पुत्र हुए उनके।
कुश और लव उनका नाम था
जातकर्मादि संस्कार जो उनके
वाल्मीकि मुनि ने अपने
आश्रम में ही किये थे।
लक्ष्मण के भी दो पुत्र हुए
अंगद और चित्रकेतु उनका नाम था
भरत जी के भी दो पुत्र
तक्ष और पुष्कल नाम था उनका।
सुबाहु और श्रुतसेन जो
शत्रुघ्न के पुत्रों का नाम था
भारत जी ने दिग्विजय में करोड़ों
गंधर्वों का संहार किया था।
शत्रुघ्न ने मधुवन में
मधु के पुत्र लवण राक्षस को
मारकर एक पूरी बसाई
मथुरा नाम की नगरी वो।
सीता ने सौंपा अपने पुत्रों को
वाल्मीकि मुनि के हाथ में
राम के चरणों का ध्यान कर
चलीं गयीं पृथ्वी देवी के लोक में।
इसके बाद भगवान राम ने
ब्रह्मचर्य धारण कर लिया
तेरह हजार वर्ष तक उन्होंने
अखंड रूप से अग्निहोत्र किया।
परीक्षित, भगवान ने देवताओं की
प्रार्थना से यह रूप धारण किया
निर्मल यश ये भगवान के रूप का
पापों को नष्ट है करने वाला।
बड़े बड़े ऋषि और महर्षि
सभा में आज भी राजाओं की
उनका गान किया करते हैं
शरण ग्रहण करूं उनकी मैं भी।
जिन्होंने राम के दर्शन किये
या स्पर्श किया था उनका
या उनका अनुसरण भी किया
सबके सब को वो लोक प्राप्त हुआ।
जो लोक है प्राप्त होता
योग साधना से बड़े योगियों को
निवासी भी कौशल देश के
चले गए थे उस लोक को।
चरित्र सुनते जो भगवान राम का
कर्मबन्धन से मुक्त होते वे
संसार से मुक्ति मिल जाती
नाम जपने से ही उन्हें।