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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत - १७७ ; दुर्वाशा की दुःख निवृति

श्रीमद्भागवत - १७७ ; दुर्वाशा की दुःख निवृति

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श्रीमद्भागवत - १७७ ; दुर्वाशा की दुःख निवृति 


परीक्षित, जब दुर्वाशा जी को 

इस प्रकार आज्ञा दी भगवान् ने 

सुदर्शन की ज्वाला से जलते हुए 

राजा अम्बरीष के पास गए वे। 


अत्यंत दुखी होकर राजा के 

पैर पकड़ लिए उन्होंने 

यह चेष्टा देख दुर्वाशा की 

राजा अम्बरीष भी बहुत लज्जित हुए। 


सुदर्शन चक्र की स्तुति करने लगे 

ह्रदय दयावश पीड़ित हो रहा 

स्तुति करते हुए चक्र से 

राजा अम्बरीष ने ये कहा। 


प्रभो !, सुदर्शन ! अग्नि स्वरुप आप 

परम समर्थ सूर्य हैं आप ही 

समस्त नक्षत्र मंडल के अधिपति 

आपके स्वरुप हैं, चन्द्रमाँ भी। 


हजारों दांत वाले आप 

भगवान् के बहुत प्यारे हैं 

हे चक्रदेव !, हाथ जोड़ आपको 

नमस्कार करता हूँ मैं। 


समस्त अस्त्र शस्त्रों को 

आप नष्ट कर देने वाले 

आप पृथ्वी के भी रक्षक 

इस ब्राह्मण की रक्षा कीजिये। 


श्रेष्ठ तेज आप परमात्मा के 

मर्यादा के रक्षक, समस्त धर्मों की 

अधर्मी असुरों को भस्म आप करें 

आप तो साक्षात् हैं अग्नि। 


दुष्टों के विनाश के लिए 

नियुक्त आपको किया भगवान् ने 

हमारे कुल के भाग्योदय के लिए 

दुर्वाशा का कल्याण कीजिये। 


महान अनुग्रह ये होगा आपका 

यदि मैंने दान किया हो कुछ भी 

या कोई यज्ञ किया हो 

तो जलन मिट जाये दुर्वाशा की। 


शुकदेव जी कहें, जब अम्बरीश ने 

ऐसी स्तुति की सुदर्शन की 

चक्र शांत हो गया था 

प्रार्थना करने से उनकी। 


चक्र की आग से मुक्त हो गए 

दुर्वाशा का चित स्वस्थ हो गया 

आशीर्वाद दिया, प्रशंशा की उनकी 

राजा अम्बरीष को उन्होंने कहा। 


दुर्वाशा कहें, भगवान् के प्रेमी 

भक्तों का महत्त्व आज देखा मैंने 

मैंने अपमान किया था आपका 

आप मेरी मंगलकामना कर रहे। 


करुणा से परिपूर्ण ह्रदय आपका 

महान अनुग्रह किया मेरे ऊपर 

मेरे प्राणों की रक्षा की आपने 

मेरे अपराध को भूलकर। 


परीक्षत, जब से दुर्वाशा भागे थे 

भोजन न किया था अम्बरीष ने 

दुर्वाशा की वाट देख रहे वो 

अब विधिपूर्वक भोजन कराया उन्हें। 


भोजन खाकर दुर्वाशा तृप्त हो गए 

उन्होंने कहा राजा अम्बरीष को 

दर्शन से आपके अनुग्रहित हुआ मैं 

अब आप भी भोजन कर लो। 


आप के इस उज्जवल चरित्र का 

गान करेंगी देवांगनाएँ भी 

पृथ्वी भी ये पुण्यमयी कीर्ति का 

संकीर्तन करती रहेगी। 


शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित 

ऐसे प्रशंशा की दुर्वाशा ने राजा की 

और उनसे अनुमति लेकर 

ब्रह्मलोक की फिर यात्रा की। 


परीक्षित, भयभीत हो सुदर्शन से 

दुर्वाशा जब भागे थे तबसे 

बीत गया एक वर्ष का 

समय लौटने तक था उनके। 


इतने दिनों तक राजा अम्बरीष वहां 

केवल जल पीकर रहे थे 

दुर्वाशा के बचे पवित्र अन्न का 

तब भोजन किया उन्होंने। 


राजा अम्बरीष भक्त भगवान् के 

राज्य का भार फिर दिया पुत्रों को 

मुक्त हुए वो इस संसार से 

भगवान् भजन करें वन में जाकर वो। 


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