'शराब' एक गम का प्याला
'शराब' एक गम का प्याला
तंग थे बहुत, बहुत गम भी थे,
तंग थे बहुत, बहुत गम भी थे,
जिस महफ़िल में हर शख्स अकेला होता है,
उस महफ़िल में आज हम भी थे...
वहां सिर्फ गम की रोशनी थी,
हरेक के चेहरे पर गम का उजाला था
अंधेरों में जश्न मनाते गम का
हरेक के हाथ में गम का प्याला था...
वहां अमीर जमीन पर पड़े थे
गरीब खुद को, नवाब कह रहे थे,
जादू था गम प्याले का
लोग बेवजह इसे शराब कह रहे थे...
दो घूंट काफी हैं मोहब्बत के
बर्बाद होने के लिए,
दो घूंट काफी हैं इस प्याले के
आबाद होने के लिए...
बाहर थे लोग अकेले अकेले
महफिलों वाले सबको बुलाया करते थे,
पीकर दो घूंट फिर गम की वो
नशे में धुत्त, मोहब्बत भुलाया करते थे...
अफवाहें हैं कि गालियां दी जाती है यहां,
यहां हर किसी को वे, नवाब कभी जनाब कह देते हैं
दो घूंट ज़रा गम के ही तो पीते हैं,
लोग बेवजह इसे, शराब कह देते हैं...
आज भी तंग हैं बहुत, बहुत गम भी हैं
जिस महफ़िल में हर शख्स अकेला होता है,
जश्न मनाने उस महफ़िल में आज
हम भी हैं...!