शजर..!
शजर..!
वो पिता जो पूरे कुटुंब का करता है पोषण
वो सड़क के किनारे पर खड़ा एक शजर है
वो शजर जिसकी शाखाएँ फैली हैं दूर दूर तक
वो वृद्ध शजर जो अपनी ज़मी को थामे है मजबूती से
टहनियाँ उन्माद में होती हैं छोटी छोटी ख़ुशियों के आश्रय से
और वो पीढ़ियों से तैनात कुटुंब का प्रहरी अपनी पीड़ा को दबा
हर्षित होता / उल्लास से भरता ख़ुद के शुष्क तन को
शाखाओं के पर्ण पर्ण को पुष्पित / पल्लवित, उत्साहित होते देख
वो पिता नहीं कुटुंब के आंगन का विशालकाय शजर है
जिस दिन वो वृद्ध शजर चरमरा कर टूट जायेगा/ गिर पड़ेगा,
सारी शाखाएँ बिखर जायेंगी,
लड़ती फ़िरेगी अस्तित्व के लिए !