शिक्षक की व्यथा..
शिक्षक की व्यथा..


कहने को तो हम शिक्षक हैं, पर हाल बयाँ ना कर पाएं
रोज रोज की चिकचिक से, हर दिन घुटते जाएं।
अधिकारियों का तुगलकी फरमान,यहां ट्रेनिंग का झमेला
कागज़ों के इस जंगल में, लगा रहता है यहां मेला।
सूचनाओं को फीड करते हम, खुद कंप्यूटर में फीड हो गए,
बच्चों को क्या खाक पढ़ाए, हम डाक में ही उलझे रह गए।
अभिभावकों की रोज शिकायतें, बच्चों की शैतानियां
कभी पढ़ाई में ध्यान न दें, कभी करें मनमानियां।
कमजोर बच्चों को पढ़ाने का, हम पर हरदम रहे दबाव,
मात्र अंक ही देखे जाएँ, मेहनत का ना यहां कोई भाव।
कक्षा में अनुशासन बनाएँ, पर दंड किसी को कभी ना दें,
नरमी करें तो ढीले कहें, सख्ती करें तो कठोर कहें।
संसाधनों की कमियां बेशुमार, पर उम्मीदें हमसे रहती ऊँची,
किताबों का यहां पता नहीं, उम्मीद करे हमसे जादू सी।
समय निकालें बच्चों के लिए, तो खुद का समय भुला दें,
त्योहारों पर भी कागज़ी काम, घर में भी स्कूल बना दें।
दिल में सदा उमंग यही, कि शिक्षा की ज्योत सदा जले,
नई पीढ़ी को राह दिखाएँ, उज्जवल उनका भविष्य बने।