शिक्षा नहीं अब व्यवसाय है
शिक्षा नहीं अब व्यवसाय है
ज्ञान कितना ही हो मगर
आरक्षण का बोलबाला है,
स्कूल से लेकर कॉलेज तक
बस बच्चों को रुपयों से
तौला जाता है।
हर कदम में इमारतें खड़ी है
कोचिंग के धंधे की
मांग बड़ी है,
नन्हें से बच्चे के दाख़िले की
क़ीमत अब लाखों हैं,
बड़ो के सपनों की अब
क़ीमत हैसियत से बाहर है।
कैसा होगा देश का भविष्य
जहाँ अब शिक्षा
देने के बजाय बेची जाती है,
शायद अब शिक्षा व्यवस्था
अमीरों को देख कर
बनायीं जा रही है,
क्योकि आम आदमी को तो
फ़ीस की चिंता में नींद नहीं आती है।
न जाने कितने ही मासूम
बंद कमरो में अवसादों से घिरे हैं,
औऱ कितने ही असफलता के डर से
मौत को गले लगा रहे हैं,
डिग्रियां भी बिक रही हैं
डॉक्टर इंजीनियर भी बन रहे,
पर क्या सच मे वो शिक्षित हो रहे हैं ?
अगर ऐसा है तो क्यों वो भी
घूसखोरी कर रहे हैं।
ये कैसी शिक्षा है देश में
जो माँ-बाप को
कर्ज के तले दबा दे,
ऐसी शिक्षा किस काम की
जो मासूमियत को ही मिटा दे।