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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

शीर्षक-सपनों में आती हो

शीर्षक-सपनों में आती हो

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मेरे सपनों में तुम रोज़ आती हो

मुस्कुराती हो और चली जाती हो

ये कैसा ज़ुल्म है तुम्हारा जो देती

पहले हंसाती हो फिर रुलाती हो।।


सताकर भी फ़िर बहुत सताती हो

याद आती हो खोती जाती हो

ऐसी नादानी क्यों करती हो तुम

क्यों आधी रात को जगाती सुलाती हो।।


मेरी फ़िक्र नहीं तुमको जो ऐसा करती

मुझे ही मुझसे छीन कर मुझपर हंसती

तुम बहुत एहसान फरामोश हो यारा

हाथ बढ़ाती हो और फ़िर हटाती हो।।



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