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शीर्षक-खामोश

शीर्षक-खामोश

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मन चाहे तितली के जैसे

रंग जीवन में भर उड़ती फिरूँ।


डाल डाल पर महकते फूलों के जैसा

अपने इस जीवन को महकाऊं

पर क्या करूं ! मौन हूं ! खामोश हूं !


यह चहकती चिड़ियों का मधुबन

देख देख कर मन ही मन सोचूं

काश ! मैं भी बात बात पर चहचहाऊं

पर क्या करूं! मौन हूं ! खामोश हूं !


देख कर मुझको समझते हैं लोग यही

"चुप खड़े हैं बेखबर मौन होकर के

लगता है महफिल से ही नहीं

अनजान है इस दुनिया से।"


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