सही और गलत
सही और गलत
आज फिर विचार करने की सभा लगी है
रात, अंधेरा, खामोशी, सभी शामिल हैं
फिर वही उलझन लेकर पसर गये हैं
सही और ग़लत के मायने अखर गये हैं
सादगी गहना है पर चमक फीकी है
परवाह करें पर ना समझ लें नज़दीकी है
उसूलों से ईमान बने, तोड़ने से काम
भीड़ में काटें, कितनी भी खाली लगे शाम
सरल हो जो रूप खरा दिखाया जाए
हाथ में नफा-नुकसान हो जो छन के बाहर आए
एक असलियत का नकाब हो तो सबको ना भाए
पानी के आकार की शख्सियत खुद में ना समाए
आंखें मींचकर सहज-ज्ञान को हाथ थमाया
किताबें खोजकर अपने इशारों पर भी नचाया
सब अनुभव सब लेख से इतना समझ आया
सही और ग़लत के बीच धुंधली सी लकीर है
मन की शंका, जिसने ये सवाल उठाया।