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Alok Singh

Abstract

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Alok Singh

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शेर -1

शेर -1

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वह सह लेती है सबकुछ किसी मज़बूरी की तरह

लड़ती है टूटती है वह मेरी हिम्मत की तरह 

मयस्सर तो भी नहीं हैं साँसे अब तो " आलोक"

उधर की रौशनी है चाँद की रौशनी की तरह  



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