शेर -1
शेर -1
वह सह लेती है सबकुछ किसी मज़बूरी की तरह
लड़ती है टूटती है वह मेरी हिम्मत की तरह
मयस्सर तो भी नहीं हैं साँसे अब तो " आलोक"
उधर की रौशनी है चाँद की रौशनी की तरह
वह सह लेती है सबकुछ किसी मज़बूरी की तरह
लड़ती है टूटती है वह मेरी हिम्मत की तरह
मयस्सर तो भी नहीं हैं साँसे अब तो " आलोक"
उधर की रौशनी है चाँद की रौशनी की तरह