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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

4  

Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

शब्दहीन होना

शब्दहीन होना

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समय की कसौटी पर, खरा नहीं उतरता,

असली की बातें कहने से भी, वो डरता।

सच का सामना जब हुआ,शब्दहीन हुआ,

झूठ सच समक्ष ही पड़ता और वो गिरता।।


भीषण दुर्घटना में, मारे गये परिवार के दो,

पिता समक्ष अर्थी जब पहुंची,शब्दहीन वो।

खून के आंसू टपक पड़े,किसको क्या कहे,

टूट गई पीठ उसकी, इतने कष्ट उसने सहे।।


देश की रक्षा करने गये, वो हो गया शहीद,

खून से ही होली खेली, खून से खेली ईद।

शब्दहीन हुई पत्नी, देखा छलनी हुआ बदन,

रक्षा करके शहीद हुआ,गोली चली दनादन।।


इज्जत लूट ली जालिम लोगों ने, मिलकर,

फूल सी बच्ची थी ऐसी, हँसती खिलकर।

मात पिता ने सुना जब, शब्दहीन हो गये,

दर्द में थे मात पिता,देते है ढांढस मिलकर।।


भरी सभा में बात बिगड़ी,हुये लातमलात,

गाली गलौच जमकर, बुरे हुये थे हालात।

देखा दृश्य सब मौन हुये, किसे क्या कहे,

तीखे शब्दों के बाण, दिल पर सभी सहे।।


मेहनत की थी बच्चे ने, सोया नहीं रात,

बुरा आया परिणाम,बुरे हो गये हालात।

पूछा पिता ने परिणाम,हो गया शब्दहीन,

आंसू तक नहीं बह पाये,जैसे समुद्र मीन।।


शराब का प्याला पीकर आया,हुआ दर्द,

एक तरफ धन अभाव, दूजे हवा थी सर्द।

पूरा परिवार देख रहा, शब्दहीन वो हुआ,

नशा बुराई बड़ी हो, खाते राह की वो गर्द।।


दिया करारा जवाब बच्चे ने,शब्दहीन बुजुर्ग,

ऐसा मंजर देखने को मिला, जैसे ढहा दुर्ग।

कभी सपने में भी ना सोचा,वक्त यह आये,

इस परिवार की इज्जत अब,दाता ही बचाये।।



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