शब से भरी नजर
शब से भरी नजर
क्यों कुछ लोगों को लगता है डर
देखकर ऊंची नीची डगर
जरा सी बातों से घबरा कर
क्यों घुट कर जीते हैं अपने ही घर
जहरीली हवाएं हैं ये सोच सोचकर
नादां परिंदे नहीं उड़ते अपने शहर
शब से भरी रहती है नज़र
नहीं दिखती उसे उजली सहर
क्यों विचारों की अंतर्द्वंदता में घिरकर
छोड़ जाते हैं जीवन का अधूरा सफ़र...