नया साल / डॉ लाल थदानी
नया साल / डॉ लाल थदानी
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नया साल है पुराने नहीं
नए वादे दोहराते हैं
घिसी पिटी यादें छोड़
अब नई रील बनाते हैं
छोड़ो किसने किससे
कब क्या कहा क्या सुना
नए अंदाज़ में सब भूलकर
मिलकर खुशियां मनाते हैं
जिंदगी माना मेला है मगर
जीने का मकसद तो हो
विदूषक बनकर क्यों
हंसाते कभी रुलाते हैं
बंद मुट्ठी से फिसलती रेत है
वक्त जरा थाम लो
बदलते कैलेंडर में चलो
नया संकल्प दोहराते हैं