क्या ढूंढते हो
क्या ढूंढते हो


क्या ढूंढते हो मुझे, लम्हात् मेरी किताबों में
उलट पलट कर, अकस्मात ज़िंदगी के पन्नों में
इंसान देखकर बदलने वालों में शख्स मैं नहीं
मैं जो कल नासमझ था बेफिक्र अक्स आज नहीं
वक्त के थपेड़ों ने जैसे जैसे नक्श मुझे तराशा है
वैसा वैसा नज़र आता हूं मैं आपके आईनों में
मैं सीखता गया साथ चलने वाले नगीनों में
मैं, मेरी सोच, मेरा चेहरा एक है मेरे आईनों में